आदिवासी कृषक कर रहे है महाअनाज क्विनोवा फसल का उत्पादन  
आदिवासी कृषक कर रहे है महाअनाज क्विनोवा फसल का उत्पादन

 


बालाघाट | कृषि महाविद्यालय बालाघाट के माध्यम से बैहर, बिरसा, परसवाड़ा के ग्रामों गुदमा, पिंडकेपार, नारंगी, डाबरी, धुनधुनवर्धा, भण्डेरी, के चयनित आदिवासी किसानों के खेतों पर क्विनोवा फसल का प्रदर्शन किया गया है। इन किसानों के द्वारा इस नई फसल को लेकर उत्साह है एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ उत्पादन किया जा रहा है।
     क्विनोवा बथुआ प्रजाति का पौधा है इसका वानस्पतिक नाम चिनोपोडियम क्विनोवा है यह रबी मौसम की फसल है क्विनोवा अन्य अनाजों की अपेक्षा बहुत ही पोष्टिक होता है इसलिये इसे महा अनाज भी कहते है, इसमें एन्टीऑक्सीडेंट गुणों के साथ साथ प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, वसा, विटामिन, अधिकतर सूक्ष्म पोषक तत्व ओमेगा एसिड 3, इत्यादि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते है जिसके कारण यह दक्षिण अमेरिकाई देशों की एक प्रमुख अनाज की फसल है। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय जबलपुर के द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में धान के बाद खाली खेतो में रबी मौसम में इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। क्योकि यह फसल बहुत कम पानी में कम उपजाऊ जमीन में कम देखरेख में भी आसानी से की जा सकती है इसे पशु पक्षी भी नुकसान नही पहुचातें है।
     कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिको डॉ. जी. के. कौतू (डीन कृषि महाविद्यालय बालाघाट), डॉ. एस. एस. बघेल, डॉ. राधेश्याम, डॉ. शिवराम, द्वारा ग्राम नारंगी, गुदमा, पिंडकेपार, के कृषकों  के खेतो पर क्विनोवा फसल का निरिक्षण किया व किसानों से क्विनोवा की उत्पादन तकनीक व प्रसंसकरण खाने में किस प्रकार से उपयोग करना है इससे क्या क्या व्यंजन बनाऐ जा सकते है बाजार में मांग के दृष्टिकोण से किसानों के विचारो एवं खेती के उनके अनुभव के बारे में जानकारी प्राप्त की गई। बालाघाट जिले के आदिवासी किसानों के खेतों पर इस नई फसल क्विनोवा का उत्पादन डॉ. उत्तम बिसेन, डॉ. शरद बिसेन  एवं श्री कमलेश्वर गौतम के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।